लोगों के बीच ये आम धारणा है कि महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन होती हैं.
इस तरह वह आपस में ही टकराव की स्थिति में रहती हैं. घरों में भी सास-बहू की लड़ाई के असल ज़िंदगी से लेकर टीवी तक पर चर्चे होते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे महिलाओं को एक-दूसरे के दुश्मन की तरह देखने के नजरिये का विरोध करती हैं.
वह
कहती हैं, ''ये बहुत पुरानी धारणा है कि महिला ही महिला की दुश्मन होती है. सच्चाई ये है कि मतभेद पुरुषों के बीच भी होते हैं. औरतों के बीच मतभेद
को बहुत उभारा जाता है. अगर सास-बहू का झगड़ा है तो क्या पिता-पुत्र के
झगड़े नहीं होते? लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का अधिकार है.''
''दूसरी
बात ये है कि हमारा समाज एक कटोरा है जिसमें जो भी विचारधारा है वो सब लोग
सोखते हैं. स्त्रियों में भी बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जो पितृप्रधान
मानसिकता को अपने अंदर सोख लेती हैं. इसी तरह कई पुरुष हैं जो ज्यादा
संवेदनशील होते हैं और वो स्त्रियों की दृष्टि से भी स्थिति को देख सकते हैं. इसलिए ये महिलाओं का आपस में विरोध जब हमने बीबीसी के लेडीज़ कोच ग्रुप में ये मसला उठाया तो कई महिलाओं ने भी इस पर अपनी राय रखी.
प्रीति
खरवार ने कमेंट किया, ''ऐसी महिलाएं दरअसल मोहरा होती हैं, जिन्हें पितृसत्तात्मक समाज महिला अधिकारों के खिलाफ इस्तेमाल करता है. इसमें उन
महिलाओं का भी पूरी तरह दोष नहीं होता क्योंकि सोशल कंडिशनिंग, परनिर्भरता,
जागरुकता का अभाव और विभिन्न प्रकार के डर के कारण उनके पास निर्णय लेने
का अधिकार नहीं होता.''
करिश्मा राठौड़ लिखती हैं, ''जहां तक तीन
तलाक वाली बात है तो मुझे लगता है कि कुछ महिलाएं पुरुषवादी सोच के कारण अपने संबंध मर्दों के अधीन जीने की आदि हो चुकी हैं.''हीं, शनि शिंगणापुर में प्रवेश के लिए अभियान चलाने वाली संस्था भूमाता
ब्रिगेड की प्रमुख तृप्ति देसाई इसका एक और पक्ष सामने लाती हैं. वह कहती
हैं कि एक रणनीति के तहत भी महिलाओं को उनके ही ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया जाता
है.
सबरीमला मंदिर के मामले में भी कुछ हिंदू संगठन और राजनीतिक दल
प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे हैं. महिलाओं के हाथों में उनके झंडे
देखे जा सकते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक्टर और बीजेपी समर्थक कोल्लम थुलासी ने मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं को दो टुकड़ों
में चीर देने की धमकी भी दी थी. उनके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज की गई है.
तृप्ति
देसाई बताती हैं, ''सुप्रीम कोर्ट महिलाओं को समानता का अधिकार देने के
लिए सामने आया है. इसलिए धर्म के तथाकथित ठेकेदार कुछ महिलाओं को धर्म के
नाम पर भड़काते हैं. जब महिलाएं मंदिर में प्रवेश करने जाएंगी, या अपने
अधिकारों के लिए लड़ेंगी तो ये महिलाओं को ही सामने कर देंगे. हमेशा वो खुद सामने नहीं आती हैं बल्कि उन्हें विरोध में खड़ा कर दिया जाता है.''
''उन्हें
अंध श्रद्धा के नाम पर डराया जाता है जैसे अगर आप धर्म के ख़िलाफ़ महिलाओं
का साथ देंगे तो साढ़े साती का प्रकोप हो जाएगा. गांव पर संकट आ जाएगा. जो इनसे डर जाती हैं वो खुद ही विरोध करने आगे आ जाती हैं.''
तृप्ति
देसाई ने बीबीसी को बताया कि वह 17 अक्टूबर को सबरीमला मंदिर के द्वार खुलने के बाद महिलाओं के समूह के साथ मंदिर में प्रवेश करने जाएंगी.
हालांकि, अभी कोई तारीख निश्चित नहीं है. किन, ऐसा करने के पीछे मकसद क्या होता है और अगर महिलाएं ही विरोध करती हैं तो उसका क्या असर होता है.
इस
पर तृप्ति देसाई कहती हैं, ''अगर महिलाएं ही विरोध करती हैं तो लोगों के
मन में सवाल उठता है कि अगर महिलाओं के हित की बात है तो वो ही विरोध क्यों
कर रही हैं. इससे आंदोलन कमजोर पड़ता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने वालों का उद्देश्य महिलाओं के लिए आए सकारात्मक निर्णय को
नकारात्मक करना है.''
वहीं, कमला भसीन कहती हैं कि पारंपरिक सोच के कारण महिलाएं सुरक्षा जैसे मसले पर भी एक नहीं हो पातीं. छोटे कपड़े क्यों
पहने थे, समय पर घर क्यों नहीं आईं ऐसे सवाल वो खुद उठाती हैं.
वह महिलाओं के एक वर्ग के तौर पर इकट्ठा न हो पाने को इसकी बड़ी वजह मानती हैं.
कमला भसीन कहती हैं, '''महिलाएं कभी एक वर्ग के तौर पर संगठित ही नहीं हो पाईं. औरत होने से पहले वह जाति, धर्म, अमीर-गरीब में बंट जाती हैं. उन
पर दूसरे मामले हावी हो जाते हैं. हम परिवारों में भी बंटे हुए हैं. औरत की
परिवार के प्रति निष्ठा के सामने महिला के प्रति निष्ठा कम पड़ जाती है. यह बहुत गहरा और उलझा हुआ है.''
''जैसे महिला को अगर कोई खतरा या जरूरत है तो परिवार ही सामने आता है, बाहर की कोई औरत नहीं. ना ही सरकारी
संस्थाएं इतनी मजबूत हैं कि महिला को वहां से सहारा मिल सके. इसलिए वो कई
मसलों पर परिवार का विरोध नहीं कर पातीं जबकि दूसरे वर्गों में उनका सामना किसी बाहरी से होता है परिवार से नहीं.
लेकिन, महिलाओं को वर्ग के
रूप में संगठित कैसे किया जा सकता है. इसके जवाब में कमला भसीन कहती हैं कि
महिलाओं को एक वर्ग के तौर पर संगठित करने के लिए बहुत मेहनत करने की
जरूरत है. जब नारीवाद इतना फैल जाएगा और हम एक-दूसरे की मदद करने लगेंगे तब
ये संभव होगा.
martedì 16 ottobre 2018
lunedì 8 ottobre 2018
ब सुनिए अपने पसंदीदा गाने दैनिक भास्कर एप के प्राइम सेक्शन में
नई दिल्ली. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि
उन्हें नहीं लगता कि बसपा से गठबंधन नहीं हो पाने से मध्यप्रदेश और
राजस्थान विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पर कोई असर पड़ेगा। हम 2019 में
बहुत ज्यादा सीटें जीतेंगे। राहुल की यह टिप्पणी बसपा प्रमुख मायावती के
हाल ही में दिए गए इस बयान पर थी कि बसपा मध्यप्रदेश और राजस्थान विधानसभा
चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी। मायावती ने आरोप लगाया था कि
दिग्विजय सिंह जैसे नेता कांग्रेस-बसपा के बीच गठबंधन नहीं होने देना चाहते।
राहुल ने कहा कि सीटों पर शेयरिंग के मामले में हमारा लचीला रुख था। यहां तक कि मेरा रुख हमारे राज्य के नेताओं से भी ज्यादा लचीला था। हम बातचीत कर ही रहे थे कि बसपा ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन राष्ट्रहित में बसपा और कांग्रेस साथ आएंगी। हमें यही संकेत मिले हैं।
राहुल ने हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में कहा, ‘‘मैं कई सालों से मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों में जा रहा हूं। अचानक इसका प्रचार होने लगा। मुझे लगता है कि भाजपा को मेरा मंदिरों में जाना पसंद नहीं आया। वह इससे नाराज हो गई। हो सकता है कि भाजपा को यह लगता है कि सिर्फ उसके नेता ही मंदिरों में जा सकते हैं।’’
आपकी और सोनिया गांधी की राजनीति में क्या अंतर है, इस सवाल पर राहुल ने कहा कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। उनसे मैंने सब्र रखना सीखा। पहले मैं इतना सब्र नहीं रख पाता था। हमारे बीच कॉमन बात यह है कि हम दोनों ही लोगों की बात सुनते हैं।
राहुल ने कहा, ''पहले मैं कम सुनता था, अब ज्यादा सुनता हूं। कल सोनियाजी ने मुझसे कहा था कि वे अंतरात्मा की आवाज की सुनती हैं और मैं अपने दिमाग की सुनता हूं। हम दोनों में शायद यही एक फर्क है।''
राहुल ने कहा कि सत्ता में आने पर हमारा फोकस तीन बातों पर होगा। मैं किसानों को एहसास दिलाऊंगा कि वे देश के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। मैं हेल्थकेयर और एजुकेशन सेक्टर पर ज्यादा ध्यान दूंगा और लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा दूंगा।
राहुल ने कहा कि नोटबंदी मोदी सरकार का सबसे बेतुका फैसला था। नोटबंदी के कारण 2% जीडीपी का नुकसान हुआ। ऐसा ही जीएसटी के मामले में हुआ। जीएसटी को लेकर हमारी अवधारणा कुछ अलग थी। लेकिन इस सरकार ने हमारी नहीं सुनी। इस सरकार ने देश की जनता के खिलाफ जंग छेड़ दी है। पोर्ट्स डेस्क: वेस्टइंडीज के खिलाफ डेब्यू टेस्ट में सेन्चुरी बनाकर पृथ्वी शॉ रातों-रात स्टार बन गए हैं, पृथ्वी ने 100 से भी कम बॉल पर शतक बनाया, हालांकि पृथ्वी टेस्ट के अलावा वनडे और टी-20 के बेहतरीन प्लेयर हैं, पृथ्वी ने अपनी कप्तानी में अंडर-19 टीम को वर्ल्ड कप जिताया था। उस पूरे टूर्नामेंट के दौरान पृथ्वी ने 100 नंबर लिखी जर्सी पहनकर मैदान में उतरे थे। तब ये कहा जा रहा था कि शायद पृथ्वी ने ऐसा अंधविश्वास की वजह से किया होगा, लेकिन टूर्नामेंट के बाद खुद पृथ्वी ने खास नंबर की जर्सी पहनने का राज खोला था।
वनडे में इस वजह से पहनते हैं 100 नंबर की जर्सी
शॉ के मुताबिक वो किसी अंधविश्वास की वजह से खास 100 नंबर लिखी जर्सी नहीं पहनते हैं। दरअसल 'सौ' नंबर उनके सरनेम 'शॉ' से काफी मिलता-जुलता है इसलिए वे इस नंबर वाली जर्सी पहनते हैं। भारत की जूनियर क्रिकेट टीम ने 3 फरवरी को खेले गए U-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 8 विकेट से हराकर रिकॉर्ड चौथी बार ये खिताब अपने नाम किया था।
सचिन से क्यों होती है तुलना ?
पृथ्वी शॉ के तुलना सचिन से की जा रही है। जिस तरह सचिन ने डोमेस्टिक क्रिकेट में एक के बाद एक कई रिकॉर्ड्स बनाकर महज 16 साल की उम्र में इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू कर लिया था, उसी तरह पृथ्वी भी घरेलू क्रिकेट में कई रिकॉर्ड्स बना चुके हैं। सचिन ने 18 साल का होने से पहले 7 सेन्चुरी लगाई थीं, वहीं पृथ्वी ने 4 सेन्चुरी लगाईं। पृथ्वी ने 12 साल की उम्र में हैरिस शील्ड मैच में 546 रन बनाकर सुर्खियों में आए थे। पृथ्वी भी सचिन की तरह ही फास्ट बॉलर बनना चाहते थे लेकिन बन गए बल्लेबाज। साल 2013 में सचिन ने क्रिकेट को अलविदा कहा था उसी साल पृथ्वी ने स्कूल क्रिकेट में 546 रन की शानदार पारी खेली थी।
राहुल ने कहा कि सीटों पर शेयरिंग के मामले में हमारा लचीला रुख था। यहां तक कि मेरा रुख हमारे राज्य के नेताओं से भी ज्यादा लचीला था। हम बातचीत कर ही रहे थे कि बसपा ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन राष्ट्रहित में बसपा और कांग्रेस साथ आएंगी। हमें यही संकेत मिले हैं।
राहुल ने हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में कहा, ‘‘मैं कई सालों से मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों में जा रहा हूं। अचानक इसका प्रचार होने लगा। मुझे लगता है कि भाजपा को मेरा मंदिरों में जाना पसंद नहीं आया। वह इससे नाराज हो गई। हो सकता है कि भाजपा को यह लगता है कि सिर्फ उसके नेता ही मंदिरों में जा सकते हैं।’’
आपकी और सोनिया गांधी की राजनीति में क्या अंतर है, इस सवाल पर राहुल ने कहा कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है। उनसे मैंने सब्र रखना सीखा। पहले मैं इतना सब्र नहीं रख पाता था। हमारे बीच कॉमन बात यह है कि हम दोनों ही लोगों की बात सुनते हैं।
राहुल ने कहा, ''पहले मैं कम सुनता था, अब ज्यादा सुनता हूं। कल सोनियाजी ने मुझसे कहा था कि वे अंतरात्मा की आवाज की सुनती हैं और मैं अपने दिमाग की सुनता हूं। हम दोनों में शायद यही एक फर्क है।''
राहुल ने कहा कि सत्ता में आने पर हमारा फोकस तीन बातों पर होगा। मैं किसानों को एहसास दिलाऊंगा कि वे देश के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। मैं हेल्थकेयर और एजुकेशन सेक्टर पर ज्यादा ध्यान दूंगा और लघु और मध्यम उद्यमों को बढ़ावा दूंगा।
राहुल ने कहा कि नोटबंदी मोदी सरकार का सबसे बेतुका फैसला था। नोटबंदी के कारण 2% जीडीपी का नुकसान हुआ। ऐसा ही जीएसटी के मामले में हुआ। जीएसटी को लेकर हमारी अवधारणा कुछ अलग थी। लेकिन इस सरकार ने हमारी नहीं सुनी। इस सरकार ने देश की जनता के खिलाफ जंग छेड़ दी है। पोर्ट्स डेस्क: वेस्टइंडीज के खिलाफ डेब्यू टेस्ट में सेन्चुरी बनाकर पृथ्वी शॉ रातों-रात स्टार बन गए हैं, पृथ्वी ने 100 से भी कम बॉल पर शतक बनाया, हालांकि पृथ्वी टेस्ट के अलावा वनडे और टी-20 के बेहतरीन प्लेयर हैं, पृथ्वी ने अपनी कप्तानी में अंडर-19 टीम को वर्ल्ड कप जिताया था। उस पूरे टूर्नामेंट के दौरान पृथ्वी ने 100 नंबर लिखी जर्सी पहनकर मैदान में उतरे थे। तब ये कहा जा रहा था कि शायद पृथ्वी ने ऐसा अंधविश्वास की वजह से किया होगा, लेकिन टूर्नामेंट के बाद खुद पृथ्वी ने खास नंबर की जर्सी पहनने का राज खोला था।
वनडे में इस वजह से पहनते हैं 100 नंबर की जर्सी
शॉ के मुताबिक वो किसी अंधविश्वास की वजह से खास 100 नंबर लिखी जर्सी नहीं पहनते हैं। दरअसल 'सौ' नंबर उनके सरनेम 'शॉ' से काफी मिलता-जुलता है इसलिए वे इस नंबर वाली जर्सी पहनते हैं। भारत की जूनियर क्रिकेट टीम ने 3 फरवरी को खेले गए U-19 वर्ल्ड कप के फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 8 विकेट से हराकर रिकॉर्ड चौथी बार ये खिताब अपने नाम किया था।
सचिन से क्यों होती है तुलना ?
पृथ्वी शॉ के तुलना सचिन से की जा रही है। जिस तरह सचिन ने डोमेस्टिक क्रिकेट में एक के बाद एक कई रिकॉर्ड्स बनाकर महज 16 साल की उम्र में इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू कर लिया था, उसी तरह पृथ्वी भी घरेलू क्रिकेट में कई रिकॉर्ड्स बना चुके हैं। सचिन ने 18 साल का होने से पहले 7 सेन्चुरी लगाई थीं, वहीं पृथ्वी ने 4 सेन्चुरी लगाईं। पृथ्वी ने 12 साल की उम्र में हैरिस शील्ड मैच में 546 रन बनाकर सुर्खियों में आए थे। पृथ्वी भी सचिन की तरह ही फास्ट बॉलर बनना चाहते थे लेकिन बन गए बल्लेबाज। साल 2013 में सचिन ने क्रिकेट को अलविदा कहा था उसी साल पृथ्वी ने स्कूल क्रिकेट में 546 रन की शानदार पारी खेली थी।
Iscriviti a:
Commenti (Atom)